प्रिय छात्र! इस पोस्ट में हम पढ़ेंगे भारत में राष्ट्रवाद चैप्टर से संबधित सारे प्रश्न, जो कि बिहार बोर्ड कक्षा 10 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमने इस पोस्ट को इस तरह से तैयार किया है कि यह आपको पढ़ने में रोचक और सरल लगे। भारत में राष्ट्रवाद से संबंधित इसमें दिए गए सभी प्रश्न पहले Bihar Board के Class 10 परीक्षाओं में कई बार पूछे जा चुके हैं, इसलिए यह आपकी तैयारी में बेहद सहायक सिद्ध होंगे। और हमने यह भी प्रश्न के आगे बताया है कि किस साल में यह प्रश्न पूछा गया है।
उत्तर:- साइमन कमीशन फरवरी 1928 में भारत आया। इसका काम भारत में संवैधानिक सुधारों पर विचार करना था। 1919 के अधिनियम के तहत जो बदलाव हुए थे, उनकी समीक्षा करना और सुझाव देना भी इसका उद्देश्य था।
जब आयोग मुंबई पहुंचा, तो लोगों ने काले झंडे दिखाकर इसका विरोध किया और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाए। देशभर में इसका विरोध हुआ। प्रदर्शन कर रहे लोगों पर अंग्रेजी पुलिस ने हमला भी किया।
उत्तर:- भारत में राष्ट्रवाद के उदय के सामाजिक कारण:
भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कई कारण थे। अंग्रेजों के शासन से भारत का राजनीतिक एकीकरण हुआ, जिससे राष्ट्रवाद को बल मिला। अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार और प्रेस, रेल, दूर-संचार के विकास से भी राष्ट्रवादी भावना मजबूत हुई। पाश्चात्य विचारधारा का प्रसार भी इसमें सहायक था।
अंग्रेजों की प्रजातीय भेदभाव, दमनकारी नीतियों और आर्थिक शोषण ने भारतीयों में प्रतिक्रिया उत्पन्न की, जिससे राष्ट्रवाद बढ़ा। मध्यम वर्ग का उदय, सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों और भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव की भावना ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार, भारत में राष्ट्रवाद के उदय के पीछे कई सामाजिक कारण थे।
उत्तर:- प्रथम विश्वयुद्ध के दो मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-
उत्तर:- 1905 के बंग-भंग आंदोलन से स्वदेशी और बहिष्कार की नीति ने भारतीय उद्योगों को फायदा पहुंचाया। भारतीयों ने धागे की बजाय कपड़ा बनाना शुरू किया, जिससे कपड़ा उत्पादन बढ़ा। 1912 तक सूती वस्त्रों का उत्पादन दोगुना हो गया। उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयात शुल्क बढ़ाए और देशी उद्योगों को रियायत दे। कपड़ा उद्योग के अलावा अन्य छोटे उद्योग भी विकसित हुए।
उत्तर:- महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन पहला बड़ा जन-आंदोलन था। इस आंदोलन की शुरुआत असहयोग और बहिष्कार से हुई। इसमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का व्यापक समर्थन मिला, जिसमें मध्यम वर्ग, किसान, आदिवासी और श्रमिक शामिल थे। इस आंदोलन के तहत लोगों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और भारतीयों ने मेसोपोटामिया युद्ध में भर्ती होने से इनकार कर दिया।
उत्तर:- 1922-23 में शाह मुहम्मद जुबैर ने मुंगेर में किसान सभा बनाई। इसके बाद, सहजानंद ने बिहार में इस आंदोलन को मजबूती दी। उन्होंने 1928 में बिहटा और 1929 में सोनपुर में किसान सभा स्थापित की। 1936 में, उनकी अध्यक्षता में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ। पहली सितंबर, 1936 को बिहार सहित पूरे देश में ‘किसान दिवस’ मनाया गया। किसानों ने बकाश्त आंदोलन भी चलाया, जिसमें उनकी मुख्य मांगें जमींदारी शोषण का अंत, बेगारी की समाप्ति और लगान में कमी थी।
उत्तर:- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को ए.ओ. ह्यूम द्वारा मुंबई में की गई थी। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत इसी से मानी जाती है।
कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य था:
कांग्रेस का प्रारंभिक उद्देश्य शासन में सुधार करना था।
उत्तर:- दांडी यात्रा का मुख्य उद्देश्य नमक के उत्पादन और बिक्री पर सरकारी नियंत्रण को खत्म करना था। गांधीजी इसे अन्याय मानते थे। उन्होंने नमक कानून तोड़ने के लिए 12 मार्च 1930 को अपने 78 साथियों के साथ दांडी यात्रा शुरू की। 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचकर उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानून तोड़ा। इससे नमक सत्याग्रह शुरू हुआ, जो जल्दी ही पूरे देश में फैल गया।
उत्तर:- खिलाफत आंदोलन इसलिए हुआ क्योंकि तुर्की का सुल्तान, जो इस्लामी जगत का खलीफा (धर्मगुरु) था, उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा सेवर्स की संधि द्वारा खत्म कर दी गई थी। इससे भारतीय मुसलमान नाराज हो गए। अली बंधुओं ने 1919 में खलीफा की पुरानी प्रतिष्ठा वापस लाने के लिए खिलाफत समिति बनाई और आंदोलन की योजना बनाई। 17 अक्टूबर 1919 को खिलाफत दिवस मनाया गया। 1924 में तुर्की के शासक मुस्तफा कमाल पाशा ने खलीफा का पद खत्म कर दिया, जिससे खिलाफत आंदोलन भी समाप्त हो गया।
उत्तर:- महात्मा गांधी ने भारत में सत्याग्रह का पहला प्रयोग अप्रैल 1917 में बिहार के चंपारण जिले में किया था। यहां के किसान निलहे बागान मालिकों के अत्याचार से परेशान थे। इन मालिकों ने किसानों को “तीनकठिया प्रणाली” के तहत अपनी जमीन के 3/20 हिस्से पर नील की खेती करने के लिए मजबूर किया। नील की खेती से जमीन की उर्वरता कम हो जाती थी और किसानों को इसका उचित मूल्य भी नहीं मिलता था, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर हो गए थे। इसके अलावा, किसानों से बेगारी कराई जाती थी और उनका शोषण होता था।
गांधी जी ने किसानों की इस दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए चंपारण में सत्याग्रह किया। इस सत्याग्रह के परिणामस्वरूप 1918 में चंपारण एग्रेरियन कानून पारित हुआ, जिससे निलहे मालिकों का अत्याचार रुका और तीनकठिया प्रणाली समाप्त हो गई।
उत्तर:- महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया था, जो सत्य और अहिंसा पर आधारित था। इसे समाज के सभी वर्गों का समर्थन मिल रहा था। लेकिन 5 फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में आंदोलनकारियों ने पुलिस थाने पर हमला कर 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया। इस हिंसक घटना से गांधी जी बहुत दुखी हुए। क्योंकि उनका आंदोलन अहिंसक था, इसलिए उन्होंने असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का फैसला किया।
उत्तर:- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर, 1885 को हुई। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण घटनाएँ थीं। लार्ड लिटन के शासनकाल में आर्म्स एक्ट और रिपन के शासनकाल में इलबर्ट बिल पर हुए विरोध ने भारतीयों को एकजुट किया। आनंद मोहन बसु और ए. ओ. ह्यूम भी एक अखिल भारतीय राजनीतिक संगठन बनाने के प्रयास में थे। ह्यूम चाहते थे कि भारतीय अपनी माँगें शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से रखें, ताकि वे क्रांतिकारी मार्ग पर न जाएं। इसी सोच के साथ कांग्रेस की स्थापना हुई।
उत्तर:- भारत में बढ़ती क्रांतिकारी गतिविधियों और असंतोष को रोकने के लिए, लार्ड चेम्सफोर्ड ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। इस समिति ने सुझाव दिया कि क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए विशेष कानून बनाए जाएं।
रॉलेट एक्ट 21 मार्च, 1919 को पारित किया गया। इस कानून के तहत, बिना सबूत और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार किया जा सकता था। एक विशेष न्यायालय भी बनाया गया, जिसके फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती थी।
उत्तर:- धर्म सुधार आंदोलन ने राष्ट्रवाद के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 19वीं शताब्दी में कई महापुरुषों ने सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने एकता, समानता, और स्वतंत्रता के मार्ग पर जनजीवन को प्रेरित किया, जिससे राष्ट्रवाद की उत्पत्ति हुई।
उत्तर:- असहयोग आंदोलन से सबसे अधिक आर्थिक असर हुआ। लोग विदेशी कपड़े नहीं खरीदे और शराब की दुकानों को बंद किया। व्यापारियों ने विदेशी सामान नहीं बेचा। इससे वस्त्र उद्योग और शराब उद्योग पर असर पड़ा। आर्थिक नुकसान हुआ। इसके साथ ही, औद्योगिक श्रमिकों ने भी हड़ताल की।
उत्तर:- 1932 में पूना में गांधीजी और डॉ. अम्बेडकर के बीच समझौता हुआ। इसमें अनुसूचित जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान था।
उत्तर:- भारत में उद्योगों की शुरुआत होने के साथ ही मजदूरों का संघर्ष भी बढ़ा। उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने की आवश्यकता महसूस होने लगी। 1920 में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई।
उत्तर:- 1920 और 1930 के बीच भारतीय राष्ट्रवादी गतिविधियाँ तेज हो गई थीं। असहयोग आंदोलन की असफलता, 1919 के अधिनियम और साइमन आयोग (1927) से असंतोष, नेहरू रिपोर्ट (1928) पर सभी दलों का समर्थन न मिलना और हिन्दू-मुस्लिम असहमति के कारण पूर्ण स्वराज्य की माँग (1929) जैसी घटनाओं ने भारतीय राजनीति को उबाल पर ला दिया। इस माहौल में, गांधीजी ने नमक कानून के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया।
इस आंदोलन में सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया, जिससे यह राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन बन गया। भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों का विरोध किया। भारतीय महिलाओं ने बहिष्कार की नीति को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई।
इस आंदोलन का ब्रिटिश सरकार पर भी असर पड़ा। सरकार ने कांग्रेस को जनता की प्रतिनिधि संस्था मानते हुए उसके साथ समझौता करने का फैसला किया। इस कारण 1935 का भारत सरकार अधिनियम पारित हुआ। इसके तहत भारतीय प्रांतों में कांग्रेस की सरकार बनी और भारतीयों को प्रशासनिक अनुभव प्राप्त हुआ।
उत्तर:- 1885 से पहले भारत में कोई अखिल भारतीय राजनीतिक संगठन नहीं था। आर्म्स एक्ट और इलबर्ट बिल पर हुए विवादों से भारतीयों ने एक राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता महसूस की। 1883 में आनंद मोहन बसु ने कलकत्ता में ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’ आयोजित की ताकि बिखरी हुई राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट किया जा सके।
उसी समय, सेवानिवृत्त अंग्रेज अधिकारी ए. ओ. ह्यूम भी इस दिशा में काम कर रहे थे। उन्होंने लॉर्ड डफरिन और ब्रिटिश पार्लियामेंट की सहमति से 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की घोषणा की। इसका पहला अधिवेशन 28 दिसंबर, 1885 को मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ, जिसकी अध्यक्षता उमेशचन्द्र बनर्जी ने की।
कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य थे:
उत्तर:- प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। ब्रिटेन ने भारतीय नेताओं से बिना पूछे भारत को युद्ध में शामिल कर लिया। कांग्रेस, उदारवादी और भारतीय रजवाड़ों ने इस उम्मीद में अंग्रेजों का समर्थन किया कि युद्ध के बाद स्वराज मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। युद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बिगाड़ दिया, जिससे जनता की स्थिति खराब हो गई। साथ ही, युद्ध के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियाँ बढ़ीं और राष्ट्रीय आंदोलन को भी बल मिला।
उत्तर:- 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में मजदूर आंदोलन शुरू हुए और उनके संगठन बने। वामपंथियों का सहयोग मिलने से श्रमिक वर्ग शोषण के खिलाफ संगठित हुआ और अपनी माँगों के लिए हड़तालें करने लगा। प्रथम विश्वयुद्ध से पहले, इसके दौरान और बाद में कई हड़तालें हुईं। हड़तालों को चलाने के लिए मजदूरों ने संगठन बनाए।
1920 में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन का गठन हुआ, जिसमें विभिन्न श्रमिक संगठनों को जोड़ा गया। आगे चलकर साम्यवादी विचारधारा के कारण इस संघ में फूट पड़ी और नए संगठन बने, जैसे ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन और ट्रेड यूनियन कांग्रेस।
1935 में ये तीनों श्रमिक संघ फिर से एकजुट हुए। तब से ये संगठन विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रभाव में मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ते रहे हैं।
उत्तर:- प्रथम विश्वयुद्ध के समय, ब्रिटिश सरकार ने भारत में उत्तरदायी शासन का वादा किया। इससे उत्साहित होकर भारतीयों ने युद्ध में सहयोग दिया, लेकिन सरकार ने वादा पूरा नहीं किया। इससे राष्ट्रवादी गतिविधियाँ बढ़ गईं।
युद्ध के दौरान, कई भारतीयों को सेना में भर्ती कर विदेश भेजा गया। इस खर्च को पूरा करने के लिए सरकार ने सीमा शुल्क और कर बढ़ा दिए, जिससे महँगाई और गरीबी बढ़ गई। इससे जनता में आक्रोश फैल गया।
इस समय, भारत और विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ बढ़ीं। इन्हें दबाने के लिए रॉलेट ऐक्ट बनाया गया, जिसका भारतीयों ने कड़ा विरोध किया। स्वराज प्राप्ति के प्रयास तेज हो गए। होमरूल आंदोलन ने स्वशासन की माँग को मजबूत किया। कांग्रेस के उदारवादी और राष्ट्रवादी एकजुट हुए और गाँधीजी के नेतृत्व में आंदोलन को नई दिशा मिली।
1917 में भारत सचिव मांटेग्यू ने संवैधानिक सुधारों की घोषणा की, जिससे मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड योजना लागू हुई। इस तरह, प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत और अन्य एशियाई-अफ्रीकी देशों में राष्ट्रवादी भावना को प्रबल बनाया।
उत्तर:- रॉलेट एक्ट 1919 में ब्रिटिश सरकार ने पास किया था ताकि भारत में बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलनों को दबाया जा सके। इस कानून के तहत सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना साक्ष्य और वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी और उसे बिना अपील के सजा भी दे सकती थी। इसे भारतीयों ने ‘काला कानून’ कहा।
गांधीजी ने इसे स्वतंत्रता और मूल अधिकारों का हनन बताया और इसके खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। देशभर में प्रदर्शन, हड़तालें और विरोध सभाएं हुईं। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं, जिससे कई लोग मारे गए। गुस्साई भीड़ ने डाकघर, बैंक, रेलवे स्टेशन आदि पर तोड़-फोड़ की। गांधीजी जब अमृतसर जा रहे थे, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे देश में आक्रोश फैल गया। स्थिति बिगड़ने पर शहर का शासन सेना को सौंप दिया गया। इस तरह, रॉलेट एक्ट ने राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित किया।
उत्तर:- सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्नलिखित परिणाम हुए:
उत्तर:- 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में लोग रॉलेट एक्ट का विरोध करने और डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के खिलाफ सभा कर रहे थे। सभा शांतिपूर्ण थी। तभी अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने बाग का एकमात्र प्रवेश द्वार घेरकर बिना चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलवा दीं। करीब दस मिनट तक चली गोलीबारी में लगभग 179 लोग मारे गए और करीब 2000 घायल हुए। इसके बाद पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया।
इस अत्याचार से पूरे देश में आक्रोश फैल गया, लेकिन जनता डरी नहीं। इसके तुरंत बाद खिलाफत और असहयोग आंदोलन शुरू हो गए। डायर की इस क्रूरता की निंदा अंग्रेजों ने भी की। इस घटना से आहत होकर गांधीजी ने ‘केसर-ए-हिन्द’ और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘सर’ की उपाधि लौटा दी।
उत्तर:- महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन भारत का पहला बड़ा जन-आंदोलन था। इसके प्रमुख कारण थे:
परिणाम:
इस प्रकार, असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन अपने उद्देश्य पूरी तरह से नहीं पा सका।
उत्तर:- सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
इन कारणों ने मिलकर सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव रखी और देशभर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन की शुरुआत हुई।
उत्तर:- अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी शासन के कारण राष्ट्रीय चेतना बढ़ी। अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीयों को लोकतंत्र, आधुनिक प्रगति, मानवतावाद, व्यक्तिवाद, यूरोपीय पुनर्जागरण, फ्रांस की राज्यक्रांति और अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के बारे में जानकारी दी। लार्ड मोंटेस्क्यू और रूसो के विचारों से प्रभावित होकर भारतीय अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुए। अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीयों की मानसिक जड़ता को तोड़ा और उन्हें स्वतंत्रता, समानता और नागरिक अधिकारों के प्रति सचेत किया।
उत्तर:- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 19वीं सदी के अंत में कांग्रेस की स्थापना के साथ ही इस आंदोलन को नई दिशा और गति मिली। भारतीय समाज में आधुनिक शिक्षा, समाचार पत्रों, धार्मिक सुधार आंदोलनों और मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवियों के उत्थान ने राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया।
1883 में आनंद मोहन बोस ने ‘नेशनल कांफ्रेंस’ आयोजित की, जिसका उद्देश्य बिखरे राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट करना था। दूसरी ओर, एक ब्रिटिश अधिकारी, ऐलेन ऑक्ट्रोवियन ह्यूम ने 1884 में ‘भारतीय राष्ट्रीय संघ’ की स्थापना की, जो बाद में ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ बनी। इसके उद्देश्य थे:
कांग्रेस का शुरुआती उद्देश्य शासन में सुधार लाना था। 1905 में बंगाल विभाजन के बाद कांग्रेस में विरोध बढ़ा और 1907 में इसमें फूट पड़ गई। गांधीजी के आगमन से कांग्रेस को नई ताकत मिली और यह पार्टी राष्ट्रीय एकता स्थापित कर भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने में प्रमुख भूमिका निभाई।
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